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वो जहां वो मां है – दुष्यंत सेन

एक दिन स्कूल जाते वक्त मुझे रस्ते में एक मां मिली जो बीच रास्ते में खड़ी नजर लगाए थी कि कोई मुझे हाट तक छोड़ दो शायद सब्जी लेने जा रही थी । मैने गाड़ी रोकी और उस मां को साथ बैठा लिया पूछा कहां जा रही है आप इतनी बुजुर्ग है घर में बेटे या पति नहीं है ? तो बोली कि ४ बेटे हैं, लेकिन वो साथ नहीं रहते खिलाते पिलाते भी नहीं और बाते अलग सुनते है तो मैं उनसे अलग अपनी एक छोटी सी कुटिया में रहती हूं । तो उन्हीं के ऊपर मैने ये कविता लिखी जो बच्चे अपने मां बाप का सहारा बुढ़ापे में छोड़ देते है या साथ नहीं रहते । ये गलत है दुनिया में लाने वाले को ही इंसान भूल जाता है । उनकी ही बदौलत से आप है आप से वो नहीं है । धन्यवाद ।

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