शक्ति रूप है सारी नारी – लावणी छंद गीत
धरती से अम्बर तक जिसकी, धर्म ध्वजा लहरायी है।
शक्ति रूप है सारी नारी, पूरी सृष्टि समायी है।।
दादी, नानी, चाची, मामी, बुआ रूप में आयी है।
भगिनी, जाया सभी अनूठे, माता ममता लायी है।।
रिश्तों का है रूप इसी से, जो बेटी कहलायी है।
शक्ति रूप है सारी नारी, पूरी सृष्टि समायी है।।०१।।
जीवन संगिनी बनकर पत्नी, हरपल साथ निभायी है।
बन लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती, हर घर नारी आयी है।।
अपनी चंचलता से जिसने, बाबुल को महकायी है।
शक्ति रूप है सारी नारी, पूरी सृष्टि समायी है।।०२।।
वही सूझ-बूझ ले फिर से, पति का वंश बढ़ायी है।
घर में चौका बरतन करती, सबके हित मुरझाई है।।
त्याग बेड़ी दहलीज की वो, शरहद तक भी आयी है।
शक्ति रूप है सारी नारी, पूरी सृष्टि समायी है।।०३।।
कला साहित्य क्रीडा में भी, जग में नाम कमायी है।
लक्ष्मी बाई बनकर जिसने, अरि को धूल चटायी है।।
बचा कहॉं है क्षेत्र जगत में, नारी नहीं समायी है।
शक्ति रूप है सारी नारी, पूरी सृष्टि समायी है।।०४।।
पढ़े लिखे आजाद रहे वह, बने नहीं सौदायी है।
पौरुषता नारी में ऐसा, नतमस्तक पुरुषायी है।।
पाठक भला तभी तक समझे, जबतक वह वरदायी है।
शक्ति रूप है सारी नारी, पूरी सृष्टि समायी है।।०५।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

