स्वागत है
शिक्षक दिवस का,
शाश्वत और सत्य पथ का,
आलोक का वह
श्रोत है,
सरल सहज
विनीत है,
गरिमामयी, अविचल,अडिग,
वह संकल्प प्रणीत है।
निज भाव से
विरक्त वह,
साधना में सिक्त वह,
प्रकाश का प्रवाह है,
यही शिक्षक का संसार है।
मुझे क्या मिला,
यह छोड़ दो,
बस जीवन को तोल दो,
उत्सर्ग के त्याग पर,
दधीचि के उपकार पर,
जो बस
बना है इसलिए,
जो बस
बुना है इसलिए।
वह समय से
निरपेक्ष है,
वह सरल है,
श्रेष्ठ है,
है आ रही आरम्भ से
यही धरा की परंपरा,
जो अब भी वही
अक्षुण्ण है,
वह साधना में लीन है।
शत शत नमन
हे गुरूपद ! तुझे,
की कैसे क्या आभार करूँ,
कैसे इस ज्ञान सरिता का,
समुचित नमस्कार करूँ!
असम्भव है,
इस सागर का कोई थाह लगाना,
देखो बस अनुभूत करो,
क्षितिज को किसने जाना…
यही थोड़े कुछ
भाव हमारे
निवेदित हम करते हैं,
इसी पावन पर्व को
शिक्षक दिवस कहते हैं।
-गिरिधर कुमार,
शिक्षक, उमवि जियामारी, अमदाबाद,
कटिहार