समाधान है अपने कर में ,
हम पीछे क्यों रह जाते है ?
चिंता से चतुराई घटती ,
फिर चिंता में क्यों पड़ जाते हैं?
यह मानव जीवन है प्यारे ,
कुछ तो मिसाल बनाना है ।
जहाँ काँटें हैं उसे शीघ्र निकाल ,
पथ स्वयं हमें ही गढ़ना है ।
हम बात करें न केवल सपने की ,
कुछ ठोस धरा पर करना है ।
लिखना हमें न कहीं रेतों पर ,
पाषाण पर लिख दिखाना है ।
जब जाने की बारी आएगी ,
उस वक्त न हम कुछ कर पाएँगे ।
आज अवसर है मानवता का ,
न दानवता का विष फैलाएंगे ।
जितने उलझे हों धागे पर ,
हमें हर एक धागा सुलझाना है ।
प्रेम , समर्पण , संयम-वृति से ,
हर दिल में इसे बसाना है ।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा ।
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )
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