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सहज फल चाख़ा

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सहज फल चाखा

विश्व कर्म करे राज रे साधो,
कर्म है धर्म का मर्म रे साधो।
कर्म बिना नही साथी कोई,
कर्म ही मानव धर्म रे साधो।

विश्व कर्म करे राज रे साधो,
कर्म धर्म को मर्म रे साधो।

मन अरु वचन समान रे साधो,
सत चित निर्मल काज रे साधो।
कान्हां कहत है कुरुक्षेत्र यह,
कर्म प्रधान संसार रे साधो।

विश्व कर्म करे राज रे साधो,
कर्म धर्म को मर्म रे साधो।

कौन बसे हिय आज रे साधो,
हिय ही हिय में घात रे साधो।
हिय आपन संभाले राख्यो,
कर्म करत दिन रात रे साधो।

विश्व कर्म करे राज रे साधो,
कर्म धर्म को मर्म रे साधो।

कर्म ही साथ निभाये साधो,
आपन धर्म बचाये साधो।
कर्म ही धर्म रहा अवनी पर,
धर्म सहज अपनाये साधो।

विश्व कर्म करे राज रे साधो,
कर्म धर्म को मर्म रे साधो।

तन मन खेल तमाशा साधो,
मत कर कुछ अब आशा साधो।
ईश की कृपा धर्म यह जानी,
स्वयं सहज फल चाखा साधो।

विश्व कर्म करे राज रे साधो,
कर्म धर्म को मर्म रे साधो।

डॉ स्नेहलता द्विवेदी'”आर्या”

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Dr. Snehlata Dwivedi

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