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सृष्टि के सृजनहार- मीरा सिंह “मीरा”

Meera Singh

जीव जगत के आधार
हे सृष्टि के सृजनहार
व्यक्त करें कैसे मनुज
आदित्य तेरा आभार
हे देवों के देव दिवाकर
सबसे बड़े जादूगर
आते रहे युगों से
नित नई सुबह लेकर
पोटली में खुशियां भर
रौशन करते सभी दिशाएं
अंधियारे को दूर भगाएं
छठ महापर्व के जरिए
शुचिता का संदेश दिए
बरस रहा है नभ से
धरा पर प्रेम की रसधार
ले रहा हर मन में हिलोरे
श्रद्धा भक्ति भाव अपार
झूमता गाता संसार
उमड पड़ा है तेरे द्वार
दर्शन के अभिलाषी
नयन सभी हैं आतुर
नाथ झलक दिखाओ
क्यों खड़े हो अति दूर
हिय श्रद्धा की जोत जलाएं
साधक तेरे जल में खड़े
शीश झुकाएं हाथ जोड़े
राहों में पलकें बिछाएं
राजा, रंक या हो फकीर
एक घाट खड़े एक तिर
महिमा तेरी यह जग जाने
मुख से कैसे हम बखाने
जात पात का भेद मिटाएं
मन के सारे मैल धुलाएं
देव नहीं है कोई तुम सा
जग आलोकित है कुंदन सा
अन्धन को देते हो आंखें
कोढ़ी को काया कंचन सा
बांझन के तुम गोद भरें हो
निर्धन को देते हो माया
बरसाते हैं सब पर कृपा
तुमसे आस करें हर इंसा
कण-कण में है नूर तेरा
जग में नाम मशहूर तेरा
अन्न जल फल पुष्प आहार
वरदान विविध औषधियां
पोषित करते सब जीवों को
मिटाते जीवन की व्याधियां
सामूहिकता की सीख
सिखाते आए मनुज को
आपस में मिलकर रहो
कहते रहे हम सभी से
जो भी दिए हैं नाथ हमें
कर रहे समर्पित आज
भक्ति भाव से भरे हृदय
चले हैं अर्घ्य देने आज

मीरा सिंह “मीरा”
+२, महारानी उषारानी बालिका उच्च विद्यालय डुमराँव, जिला-बक्सर,बिहार

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