Site icon पद्यपंकज

स्मृति शेष – संजय कुमार

 

बहुत स्नेह करता था न!
तू मुझे,
सब कुछ बताता था,
कहता था कुछ भी नहीं छुपाता
मैं तुझसे
मैं विस्मित करता तुझे
तू मुझे ज्यादा विस्मित कर देता
पर आज ज्यादा विस्मित कर दिया
चला गया छोड़ कर मुझे
यह कहकर कि
अब स्मृति में रहोगे।
जैसे सागर के गर्भ में पर्वत
बाहर से दिखता नहीं
तुम भी दिखोगे नहीं सामने से
पर भूलोगे भी नहीं
अंतिम बार तेरा चरण स्पर्श किया
जब चीर निद्रा में सोए थे तुम,
स्पर्शित हाथ कँपकपा गए
कम्पित हाथों को तूने स्नेह से कहा

छोड़ कर नहीं जा रहा रे
ये ऋचा देख रहे हो न
यह मैं ही हूँ
तेरी कविता में हूँ
शब्द बनकर
जब शाम ढले,
छत पर आना,
आसमान से घण्टों
बात करेंगे हम दोनों,
जिद नहीं करना आने को
ठीक ठीक सुनना, रोकूँगा तुम्हें
जब पथ भटकेगा
दिल से आवाज आई
नाम के अनुकूल
विनोद करने की आदत
गई नहीं तेरी भैया।

संजय कुमार
जिला शिक्षा पदाधिकारी
अररिया

1 Likes
Spread the love
Exit mobile version