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स्वामी विवेकानंद – गिरींद्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

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स्वामी विवेकानंद (12 जनवरी, 1863- 4 जुलाई, 1902)

हे पुरुष-सिंह ! हे मानवता के अवतार !
बचपन से ही तुम थे दानी परम उदार,
हे नरेन्द्र ! बचपन बीता खेल-खेल में,
करते ध्यान तो सखा होते चकित अपार,
माँ भुवनेश्वरी से मिली तुम्हें श्रेष्ठ शिक्षा,
बेटा ! सदा करना धर्म-मर्यादा की रक्षा,
आया यौवन, जगी ईश्वर-दरश की ललक,
निज प्यास हेतु किया कई संतों से मिलन,
अंत में संत श्रीरामकृष्ण के गये तुम दरबार,
उनकी कृपा से ही हुआ ईश्वर से साक्षात्कार,
उनकी पग-धूलि में पाया सारा उपदेश महान,
बल, धर्म, भगवान को तूने दिया उच्च स्थान,
देशभक्ति थी कूट भरी, दीन-दुखी थे भगवान,
दीन-दुखियों की सेवा को बताया कर्म महान,
शिकागो सभा से परम सत्य का किया उद्गार,
सब धर्मों को एक बताया, हे भारत के लाल !
विश्व को भारत के समक्ष, करके नतमस्तक,
हे अद्भुत व्यक्तित्व ! किया तुमने ज्ञान-प्रचार,
साढ़े उनचालीस की आयु में किया देह-त्याग,
हिंदुस्तान नहीं भूलेगा, तेरा अद्भुत ऋण अपार ।

गिरीन्द्र मोहन झा

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