दिया है हक हमें
लड़ने का बढ़ने का
डटने का स्वप्न देखने का
बोलने का समता का
मर्ज़ी से पूजन शिक्षण करने का
निर्बाध देश घूमने का।
किसी भूभाग में बसने और
आजीविका का।
न कोई रोक टोक
न कोई भेदभाव
सभी हैं समान इसकी नज़रों में
चाहे दीन हो या साव।
व्यवस्थाएं की गई हैं कई,
ताकि सोचें सीखें ज्ञान नई नई।
क्रमानुसार अनुच्छेदों में किया है प्रावधान,
बाबा साहब ने लिखा यह संविधान;
हैं उनके हम पर कई एहसान।
जरूरत है उनके पदचिन्हों पर चलने की,
संवैधानिक दायरे में रहकर बढ़ने की।
हक हुकूक के लिए लड़ने की,
एकता सौहार्द स्थापित करने की।
साजिशों को दरकिनार करने की,
साजिशकर्ताओं को सबक सिखाने की।
संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने की,
तभी दुनिया हम पर गर्व करेगी।
हमारा अभिमान हमारा संविधान।
लेखक- मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
प्रधानाध्यापक, उमवि भलुआ शंकरडीह
तरैया ( सारण )
हमारा संविधान- मो.मंजूर आलम
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