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हिंदी की बिंदी – प्रियंका कुमारी

 

अक्षर से अक्षर

सजाऊँगी मैं,

हिंदी की बिंदी

लगाऊँगी मैं।

हिंदी की महत्ता

बताऊँगी मैं ,

हिंदी की बिंदी

लगाऊँगी मैं।

तत्सम तद्भव की माला

बनाऊँगी मैं,

हिंदी की बिंदी

लगाऊँगी मैं।

देशी विदेशी शब्दों को

अपनाऊँगी मैं,

हिंदी की बिंदी

लगाऊँगी मैं।

स्वरों की सरिता

बहाऊँगी मैं,

हिंदी की बिंदी

लगाऊँगी मैं।

शब्दों से शास्त्र

बनाऊँगी मैं,

हिंदी की बिंदी

लगाऊँगी मैं।

वाणी की शोभा

बढ़ाऊँगी मैं,

हिंदी की बिंदी

लगाऊँगी मैं।

देश के गौरव को

पाऊँगी मैं,

हिंदी की बिंदी

लगाऊँगी मैं।

अक्षर से अक्षर

सजाऊँगी मैं,

हिंदी की बिंदी

लगाऊँगी मैं।

प्रियंका कुमारी (पाण्डेय)

उ. म. वि. बुढ़ी

कुचायकोट, गोपालगंज, बिहार

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