हिंदी – सार छंद
सागर सी है गहरी भाषा, प्रेम जगाने वाली।
इसके अंदर ज्ञान छुपा है, सुंदर सुखद निराली।।
संस्कृत की बेटी हिंदी है, अति मनहर सी भाषा।
वधु वसुंधरा की हो जाए, इतनी है अभिलाषा।।
सबसे ज्यादा बोली जाती, जितनी भी है बोली।
स्थान दूसरा उनमें पाकर, हिंदी पुलकित हो ली।।
घर में अपने हुई अनादर, रोई हिंदी भाषा।
गले लगाले नव पीढ़ी अब, इतनी है अभिलाषा।।
शानो-शौकत शेख बघारें, अंग्रेजी की बोली।
हिंदी भाषी पर क्यों करते, सब हैं हँसी ठिठोली।।
सदा समाहित करती सबको, जिसकी हो परिभाषा।
अपने घर में टूट रही फिर, क्यों उसकी अभिलाषा।।
तुलसी कबीर सूर नहीं अब, मधुशाला भी खाली।
नहीं निराला और बिहारी, है मीरा मतवाली।।
हमें लेखनी सह स्वर देना, गढ़ना नव परिभाषा।
भारत की भाषा हो हिन्दी, पूर्ण करें अभिलाषा।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

