Site icon पद्यपंकज

हिंदी हमारी अस्मिता की पहचान – PINKI KUMARI


हाँ, मैं हिंदी हूँ,
मुझसे ही तो हिंद की पहचान है।
हर दिल की गहराई में बसी,
मैं भावों की पहली उड़ान हूँ।

न जाने कब से, युगों-युगों से,
मैं समर्पण की गाथा गा रही हूँ।
संस्कृति की सौंधी खुशबू में,
मैं हर कोने में समा रही हूँ।

मैं ही वह स्वर, जो तुम बोलते हो,
जब अंतरतम के भाव खोलते हो।
मैं बुद्ध, कबीर, तुलसी की वाणी,
प्राकृत की पावन विरासत हूँ मैं।

पर आज के इस तेज़ समय में,
मैं कहीं पीछे सी छूट रही हूँ।
कुछ लोगों को मुझसे संकोच है,
मैं देख रही, चुपचाप सह रही हूँ।


पर मत भूलो, मैं तुम्हारी राष्ट्रभाषा हूँ,
तुम्हारे आत्मसम्मान की आशा हूँ।
तुमसे हूँ मैं, और तुम मुझसे,
इस रिश्ते को मत यूँ भूलो कभी।

आओ आज मिलकर एक प्रण करें,
हिंदी को फिर सम्मान दें।
हर घर, हर गली में गूंजे स्वर,
हिंदी बोले हर जन-जन!

गर्व से कहो –
हाँ, मैं हिंदी हूँ,
मुझसे ही तो हिंद की पहचान है।



0 Likes
Spread the love
Exit mobile version