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हिन्दी गाथा – RAGINI KUMARI

             हिन्दी गाथा 

यह सार-सार-संसार बना है हिन्दी से,

पुष्पित शब्दों का हार बना है हिन्दी से।

हमने हिन्दी में माँ देखा ,

या देखा माँ में ही हिन्दी,

पर जो देखा पूरा देखा ,

क्योंकि माँ ही पूरी होती ।

साहित्य सुधा रस पिला-पिला पोषित करती,

हिन्दी अपनी गरिमा की अभिलाषित होती,

अब बारी अपनी है उसको पोषित करना,

वाणी में बसा कलमों से रचा सुरभित करना।

रचा बसा कर इसे उठाएँगे उपर,

ऐसे भी पल आएँगे हिन्दी,

सर्वश्रेष्ठ भाषा कहलाएगी भूपर,

अब लिया है एक संकल्प,

कि बन कवयित्री.

बस गाऊँ गीत हिन्दी के,

करूँ श्रृंगार हिन्दी के,

बन साहित्यकार ,

भरूँ भंडार हिन्दी के ।

मधुर रस घोल दे कानों में वो हिन्दी हमारी है ,

कि वीणा वादिनी से बस अरज इतनी हमारी है,

कि वर दे श्रेष्ठता, सम्मान का हिन्दी की बारी है l

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