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हे गुरु- स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’

Snehlata

हे गुरु

हे गुरु स्वीकार करना इक नमन संस्कार रे मन,
जागने के फन का तू ही है मेरा आधार रे मन,
स्वर्ण आभा स्वर्ग सुख या हो जगत आधार रे मन ,
इन सभी के प्राप्ति का है तू सहज ही मार्ग रे मन।

हे गुरु स्वीकार करना इक नमन संस्कार रे मन।

मेरे बचपन की कहानी की गुरु मेरी माँ थीं रे मन,
प्रथम पूज्या हिय की अमृत थीं सहज अभिमान रे मन,
कुछ समझने और बतियाने की तोतली बात रे मन,
जग से परिचय स्वंय परिचित करने की शुरुआत रे मन,
आत्म-शक्ति मातृ-शक्ति श्रेष्ठ गुरु दिनमान रे मन।

हे गुरु स्वीकार करना इक नमन संस्कार रे मन।

मिट्टी के इस देह का मानव में था अवतार रे मन,
ज्यों मिले थे गुरु हमें मिलने लगा कुछ ज्ञान रे मन,
समय समृद्ध ज्ञान अमृत छुधा तृप्ति पान रे मन,
सहज सुंदर शब्द प्रतिपल गढ़ रहे नवमान रे मन।

हे गुरु स्वीकार करना इक नमन संस्कार रे मन।

दिन बीते , रात बीती बीत गए कई साल रे मन,
पल दो पल हर पल समर्पित था गुरु का ध्यान रे मन,
इस धरा पर ज्ञान रश्मि की सुधा रसपान रे मन,
हे गुरु शत शत नमन है हृदय आभार रे मन।

हे गुरु स्वीकार करना इक नमन संस्कार रे मन।

डॉ स्नेहलता द्विवेदी आर्या
उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार

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