मनहरण घनाक्षरी
बहती है कलकल,
सोचती है हरपल,
सूखे नहीं नीर कभी,यही दुआ करती।
तट पर आशियाना,
साधु-संतों का ठिकाना,
होता यशोगान हरि,वेदना को हरती ।
गर्भ में जहान पले,
सीप-मोतियाँ भी भले,
तल नष्ट होता देख,वह आहें भरती ।
टकराती है लहरें,
डूब जाती है शहरें,
प्रकृति तांडव करे, है बेबस धरती।
एस.के.पूनम।
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