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मां शारदे वर दे-विवेक कुमार

Vivek

मां शारदे वर दे

मां शारदे की महिमा से अछूता न कोई सार है,
मां के रूपों में ही छुपा जग संसार है,
उन्हीं के चरणों में ज्ञान का भंडार है,
विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी,
मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे।

मां की कृपा के बिना न होता ज्ञान का संचार है,
इनकी करुणा बड़ी अपरम्पार है,
अपने रूपों में धारित वस्तु से, मां जग को सबक देती खास है,
विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी,
मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे।

नकारात्मक प्रवृतियों से सकारात्मकता का कराए भान, पुस्तक ही बस एक नाम,
निरस जीवन में सरसता का रंग भरती, वीणा ही वो सरगम,
विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी,
मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे।

स्फटिक माला दर्शाती वैराग्य और ध्यान बिन, न मिलता संपूर्णता का है भाव,
अपनाने के लिए तो बहुत है मगर, कल्याणकारी अपनाने की कला हंस है सिखलाता,
विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी,
मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे।

कीचड़ में ही कमल है खिलता, कोमलता और सुंदरता का क्या अनुपम सार है,
वीणापाणी मां के सर्वस्व संरचना में, सबक बेहिसाब है,
विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी,
मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे।

हम अज्ञानी मुरख हमें ज्ञान का दर्श दिखा दे मां,
अपने ज्ञान के रस में हमें तू सराबोर का दे,
विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी,
मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे।।

विवेक कुमार
(स्व रचित एवं मौलिक)
मुजफ्फरपुर, बिहार

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