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गुरु-शिक्षा का दान-अर्चना गुप्ता

गुरू

आखर-आखर थी मैं बिखरी
आपने ही मुझे शब्द बनाया
मैं तो थी मृण की एक कण
गढ़ आपने सुंदर घट बनाया
बन प्रकाशपुंज का आधार गुरु
पथ आलोकित सहज बनाया
अहर्निश दीपशिखा-सम जलकर
दैदीप्यमान समस्त संसार बनाया
दे संचित ज्ञान की शिक्षा गुरुवर
धरा से गगन का विस्तार दिलाया
महक उठा मेरा जीवन उपवन
सदाबहार सा जो पुष्प खिलाया
अखंड ज्ञान का दीप जलाकर
अज्ञान तिमिर को दूर हटाया
सन्मार्ग की मुझे राह दिखाकर
आत्म-परमात्म का भान कराया
बन पथ-प्रदर्शक व अभिभावक
हर चुनौती संग लड़ना सिखलाया
देकर स्नेह की थपकी निशदिन
व्यावहारिक-कर्तव्यनिष्ठ बनाया
सींच ज्ञान से नव-पल्लव को
वटवृक्ष सा विस्तार दिलाया
स्वार्थरहित परमार्थ भाव से
सत्-असत् का ज्ञान कराया
गुरू सम न होता कोई सानी
जिसने जीवन का पाठ पढ़ाया
ऐसे परमपूज्य गुरु चरणन में
बारंबार मैंने है शीश नवाया

शिक्षा का दान

शिक्षक तो देते शिक्षा का दान
है उनसे सुरभित सबका जहान
ज्ञानदीप अखंड जलाते निशदिन
उनकी महिमा है अनन्त महान

शिक्षक तो हैं जग में राष्ट्र निर्माता
नव पल्लव के वो भाग्य विधाता
नौनिहालों का सँवारकर बचपन
जीवन सुखमय उज्ज्वल बनाता

शिक्षक तो होते हैं ज्ञान के ग्रंथ
उनसे ही मिलता जीवन का मंत्र
देकर दान ज्ञान, संकल्पभाव का
बनाते गगनचुंबी वो मीनार स्वतंत्र

शिक्षक ही तो हैं जीवन-आधार
धरा से गगन तक देते अनंत विस्तार
ज्ञानामृत पान करा कच्चे लोंदे को
गढ़ माटी बनाते वो अतुल्य आकार

शिक्षक का न होता कोई सानी
बिन उनके शिक्षा कोरी बेमानी
नित नूतन प्रेरक आयाम वो देते
चतुर्दिक फैले उनकी कीर्ति-कहानी

शिक्षक ही हैं शब्द ज्ञान के दाता
गुरू बिन न यह संभव हो पाता
दिखा मंजिल की किरण सुनहरी
हैं निज पहचान के गुरू ही प्रदाता

शिक्षक तो हैं सफल राष्ट्र की धुरी
बिन उनके होती ना कोई शिक्षा पूरी
दीप प्रज्वलित वो जीवन का हैं करते
वर्ना रह जाती अज्ञानता की राह घनेरी

शिक्षक कराते हर विधा का संज्ञान
सबका जीवन बनाते सफल महान
इस हर्षित पुलकित पावन अवसर पर
आओ सब मिल करें उनका सम्मान

अर्चना गुप्ता
म. वि . कुआड़ी
अररिया बिहार

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