Site icon पद्यपंकज

पुस्तक-अश्मजा प्रियदर्शनी

पुस्तक

पुस्तक हस्त विराजे सरस्वती के समान।
यह सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक, जीवन में है प्रधान।
वर्तमान, भूत, भविष्य का ये करता बखान।
शाश्वत जगत, ब्रह्मांड का ये देता है दिव्य ज्ञान।
ऐसे मित्र का साथ बढ़ाता है मान।
इससे अद्भुत कुछ नहीं यह हड़ती है अज्ञान।
पुस्तक है दिव्य जोत जैसे ब्रह्मा, विष्णु व महेश। नीति शास्त्रों का संग्रह और इतिहास के अवशेष।
हर विधा की लेखनी का होता इसमें श्री गणेश।
जीवन का कोई क्षेत्र इससे नहीं रहता शेष।
किताब में होते अनुपम, वस्तु-विषयक चित्र।
ये हमारे मार्ग-दर्शक और है सच्चे मित्र।
प्रेरणादायी लेखन बदल सकता है चरित्र।
धर्म-शास्त्र में इसकी महिमा अत्यंत पवित्र।
पुस्तक में वर्णित सर्व ज्ञान का आख्यान।
इससे ज्ञान पाकर जन-जन करता व्याख्यान।
कभी देश-भक्ति का होता अनुपम आह्वान।
श्रद्धा सूचक गीता, बाइबिल और कुरान।
रामचरितमानस दोहावली नितदिन पढता प्राणी।
पुस्तक उपमा बड़ी निराली, इसमें संतो की वाणी।
ज्ञान पाकर बन जाता जब रावण कभी अभिमानी।
दिव्य परमात्मा ने भी तब धर्म-रक्षण की ठानी।
धर्म ग्रन्थों को पढकर हमने बात सारी जानी।
इसमें वर्णित काव्य, लेख, दोहा पढ बने हम ज्ञानी।
पंचभूत, महाकाव्य, पंचतत्व अनेक अनुष्ठान।
ज्ञान के सागर मे दिप शिखा बनते कई प्रतिष्ठान।
पुस्तक में वर्णित सर्व कर्म काण्ड का आख्याण।
लव-कुश ने किया रामायण का व्याख्याण।
पुसतक है महासागर अनेक इसकी भाषा है।
गीता, वेद, कुरान, बाइबिल से ज्ञान की आशा है।

पुस्तक है अद्भुत, विस्तृत इसकी परिभाषा है।
हिन्दी साहित्य ऊँचा उठे यही मेरी अभिलाषा है।

अश्मजा प्रियदर्शिनी
पटना, बिहार
Spread the love
Exit mobile version