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माँ-प्रियंका कुमारी

माँ

छोटा सा शब्द है “माँ”
पर इसका न कोई मोल है
यह तो वह होती हैं
जो दुनियाँ में सबसे अनमोल है।
माँ शब्द में छुपा हुआ वह शक्ति है,
जो मानो ईश्वर की भक्ति में है,
या सीधे कहे तो माँ का आदर करना ही
ईश्वर की सच्ची भक्ति है।

माँ तपती है, जलती है,
हर संघर्ष जीवन का वह करती है,
हमारे एक छोटी सी मुस्कान के लिए
अपने जीवन के हर सूख का निछावर करती हैं,
हे माँ! तू यह कैसे कर पाती है?

रुखा-सुखा खुद खाकर
हमें भरपेट खाना खिलाती है,
जो तू कुछ न भी जाने बनाने
कहीं से भी सीख कर
प्यार से बनाकर निवाला हमें खिलाती है,
हे माँ! तू यह कैसे कर पाती है?

चीखती हूँ, चिल्लाती हूँ, रूठती और तुझको बहुत सताती हूँ,
फिर भी तू राह देख कर मुझको मनाती है,
हँसती और मुझको भी तू हँसना सिखाती है, 
हे माँ! तू यह कैसे कर पाती है?

तू खुद बंध जाती है एक सीमा तक
पर दुनियाँ हमें अपना नाम बनाने के लिए,
हममें खूब उत्साह जगाती है,
हे माँ! तू यह कैसे कर पाती है?

अगर कभी हम गलत या भटक जाए रास्ते,
उससे भी तू प्रेरणा का पाठ हमें सिखाती जाती है,
हमारे अंदर ना जाने कैसे?
उम्मीद की एक दिव्य प्रकाश तू जला जाती है,
हे माँ! तू यह कैसे कर पाती है?

चलते-चलते गिरना, गिरकर उठना,
उठकर संभल कर कैसे चलना है, 
यह पाठ विद्यालय में कोई हमें कहाँ सिखला पाता है,
तेरी ममता की शक्ति और तेरे अनुभव,
हमें जीवन का हर पाठ सिखा जाती है।
हे माँ! तू यह कैसे कर पाती है?

हमारे जीवन की मुश्किलों में
हर मुश्किलों का तू ढाल बन जाती है,
हमारे लिए तू दुनियाँ से भी लड़ जाती है,
हे माँ! तू यह कैसे कर पाती है?

जब तक मंजिल पा ना ले हम, 
हमारे साथ तू भी संघर्ष करती चलती जाती है,
मिल जाए मंजिल हमें तो,
तू अपने लिए बिना कुछ उम्मीद किए
बस हमें आजादी से खुश रहने का
मूल मंत्र सिखला जाती है।
हे माँ !तू यह कैसे कर पाती है?

हे माँ! अपना आशीष मुझ पर यूं ही बनाए रखना
गलती करूं मैं चाहे तेरे सामने जितना,
माँ तेरी ममता मेरे जीवन का आधार है,
तेरे चरणों में मेरा पूरा संसार है।

प्रियंका कुमारी

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