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प्रकृति का श्रृंगार बसंत-भवानंद सिंह

प्रकृति का श्रृंगार बसंत 

बह रही है वासंती बयार
भिनी-भिनी खुशबू बिखेरती,
चले पवन हर डार-डार
हिय से करूँ इसका आभार।

नव पल्लव लग जाते हैं
वृक्ष और लताओं में,
अन्त:करण खिल उठता है
ऋतुराज बसंत के आने से।

बसंत ऋतु जब आता है
प्रकृति का श्रृंगार बढ जाता है,
वन्यजीव और पशु पक्षियों में
नवजीवन का संचार हो जाता है।

बसंत ऋतु के शुभ आगमन से
छा जाती हरियाली है,
पतझड़ के दिन बीत गए
लाती जीवन में खुशहाली है।

सुन्दर मनोरम लगे बसंत
फूल खिले हर बाग में,
आनंदित हो उठे रोम-रोम
झूमे सरसों और खेत खलिहान।

अन्तर्मन खिल उठता है
बसंत की पहली नव किरण से,
मन में उमंग भर जाता है
ऋतुराज बसंत के आने से ।

प्रकृति का उपहार है बसंत
मधुरम सा लगे संसार है,
अगर न होता ये मौसम
जीवन लगता बेकार है। 

जीवन सरस लगता है सबका
ऋतुराज बसंत के आने से,
पुष्पित पल्लवित हो जाता है
वन-उपवन और ये वसुन्धरा।

भवानंद सिंह
रानीगंज अररिया

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