Site icon पद्यपंकज

आईना-प्रमोद कुमार

Pramod

आईना

तब तो तू बहुत खुश था,
सुन्दर रूप अपनाया था।

तेरे अरमानों के माफिक
मैंने तुझको सजाया था।।

मस्ती की झलक आंखों में,
रग में गजब रवानी थी।

बशा लिया था खुद में मुझको,
बिल्कुल अलग कहानी थी।।

राह तकते नहीं थकते थे,
हँसते और मुस्कुराते थे।

मेरे सामने आते हीं तुम,
खुशियों से भर जाते थे।।

तू बेरहम बेवफा इतना ऐसे,
आईना तू आज क्यों निकला?

कल तू तो कितना प्यारा था!
आज दगाबाज तू क्यों निकला।

अब चांद भी चमकने लगा,
सफेदी की चमकार हुई।

समय ने भी करवट बदला,
हड्डियों में भी झंकार हुई।।

सब नखरा-नाज है निकला,
सारा सूर-साज है फिसला।

समय-समय का फेरा है सब,
आईने से आवाज है निकला।।

मैं तुझे भला क्यों भरमाऊ!
असली तेरा मैं रूप दिखाऊं,

मेरा इसमे दोष बस इतना,
सत्य से मुंह मोड़ न पाऊं।।

प्रमोद कुमार
प्रखंड शिक्षक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय दुमदुम
भभुआ कैमूर

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version