अखंड भारत
पनप रहे हर शब्द बीज से
अखंड भारत का वटवृक्ष बनेगा,
अबोल स्वप्न नैनों में सजाए
नवसृजन का नव द्वार खुलेगा,
बँट रहे हों भले देश कितने
भारत अखंड है अखंड रहेगा।
आत्मचेतना जागृत करके
अहर्निश नया आह्वान होगा,
सर्वधर्म समभाव समन्वय
हर गली जयकार होगा,
बँट रहे हों भले देश कितने
भारत अखंड है अखंड रहेगा।
बुलंदियों के अनंत आकाश में
हिंदवीरों का शौर्यगान होगा,
राह की हर बाधा को मोड़
जीवन का नया संग्राम होगा,
बँट रहे हों भले देश कितने
भारत अखंड है अखंड रहेगा।
संघर्षों के कर्तव्य पथ पर
अनवरत अडिग कदम बढ़ेगा,
दूर कितनी भी हो मंजिल
कदम कभी ना अब रूकेगा,
बँट रहे हों भले देश कितने
भारत अखंड है अखंड रहेगा।
आजादी के हर शंखनाद पर
समय नया इतिहास लिखेगा,
लहू बहाकर देश की खातिर
स्वर्णिम नूतन अध्याय सजेगा,
बँट रहे हों भले देश कितने
भारत अखंड है अखंड रहेगा।
अर्चना गुप्ता
म. वि. कुआड़ी
अररिया, बिहार