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अपना गांव तथा बचपन–शुकदेव पाठक

 

अपना गांव तथा बचपन

अपना गांव लगता बड़ा प्यारा
गुजरा यहां है बचपन हमारा
गांव के अपने चाचा–ताऊ
खुश होते देख भाई–भाऊ।
गांव का वातावरण होता ऐसा
रहते साथ भाईचारा जैसा
सबके सुख–दुख में शामिल
दिमाग नहीं लगाते फाजिल।
गांव में होती प्रचूर हरियाली
वन उपवन की छटा निराली
कहीं आम बरगद शीशम नीम
जामुन सागवान पीपल भीम।
दोस्तों के साथ मस्ती करते
सुबह शाम मैदान में खेलते
नहा धोकर स्कूल हैं जाते
धमा चौकड़ी खूब मचाते।
गांव का अपना विद्यालय
मानो जैसे लगता देवालय
ज्ञान की वर्षा जहां होती
गुरुजनों से हमें शिक्षा मिलती।

✍️शुकदेव पाठक
मध्य विद्यालय कर्मा बसंतपुर
कुटुंबा, औरंगाबाद, बिहार

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