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आत्मदृष्टि बदल दे सृष्टि-मधुमिता

 

आत्मदृष्टि बदल दे सृष्टि

हे आत्माओं कर लो परमात्मा से प्यार
वो प्यार का सागर देता हमें

केवल प्यार ही प्यार
अपने दुःख का कारण न समझ उनको,
वो तो केवल करते सबका कल्याण।
माया ने जन्म-जन्म भटकाया,
अब तो बात मेरी मान।
आत्म दृष्टि से पहचान एक-दूजे को,

छोड़ भी दे मिथ्या देह अभिमान।
न देखो जात-पात, धर्म, लिंग

और न देश-विदेश,
आत्मा रूप में देखो सबको,

सबका एक ही वेश।
हम सभी आत्माएं उस

परमात्मा की संतान हैं।
विनाशी संसार के विनाशी देह में

क्यों इतना अभिमान है?

हे आत्माओं कर लो परमात्मा से प्यार।
वो प्यार का सागर वर्षा रहा

हम पे प्यार ही प्यार।
अपने सुख-दुःख का कारण तो

अपना ही कर्म है।
सुख में जिसे भूल गए,

फिर दुख में वो कैसे कुशुरवार है?
हे आत्माओं अपने कर्मों को सुधार।
न बना उस प्यारे परमपिता को

अपने कर्मों का जिम्मेवार।
शुद्ध बना अपने संकल्पों को

जीवन पवित्र हो जाएगा।
प्यार कर लो प्यार के सागर से

जीवन कमल से खिल जाएगा।

मधुमिता
 मध्य विद्यालय सिमलिया
 बायसी
पूर्णिया (बिहार)

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