आत्मनिर्भर
बिना सहारे जीवन “पथ पर “
चलता है जो अपने सामर्थ्य पर
जिसे भरोसा अपने कर्म पर
वही तो है जग में “आत्मनिर्भर “।
नन्ही सी “चिड़िया” को देखो
लाती है तिनका चुन-चुन कर
“नीड़” नहीं बन जाता तब तक
नहीं बैठती कभी वह थक कर।
वही तो है जग में…l
है खुँखार जंगल का राजा
कितना है बल उसके अंदर
अपना शिकार वह खुद करता है
खाता नहीं किसी से छिनकर।
वही तो है जग में …l
जग में छोटी जीव है जुगनु
उसको कहाँ “तिमिर” का डर
अपने पथ को रौशन कर लेती
अंदर का “विश्वाश” जलाकर
वही तो है जग में….।
सृष्टि से हमें सीख मिली है
नहीं रहना हमें किसी पर निर्भर
करें कोशिश कि खड़े हो जाएँ
“दुनियाँ” में अपने पैरों पर।
तभी तो होँगे हम आत्मनिर्भर।
स्वरचित
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
राज्यकृत मनोरमा उच्चतर विद्यालय, मुजफ्फरपुर
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