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रजनी गंधा की महक अवधेश कुमार

रजनीगंधा की महक

सुबह की बेला मे
जब ओस की बूँदों संग
रजनीगंधा महके,
मन प्रफुल्लित करे—
यही सुगंध, यही एहसास,
हर घर को स्वर्ग जैसा बना दे खास!

रजनीगंधा, ओ सुगंधराज,
रात की रानी का प्यारा साज़।

दिन भर चुप, रात में बोले,
महक बिखेरे, मन में डोले।
सफ़ेद सी पंखुड़ियाँ, मोतियों की लड़ी,
डंडी पर सजे, सुरों की झड़ी।
शादी-ब्याह का भरोसेमंद यार ,
हर सजावट में रचता अपना प्यार।
ताज़गी इसकी, जैसे हिम्मत की डोर,
रहे हफ़्तों तक, खुशबू की लोर।
तनाव मिटाए, नींद दिलाए,
थके मन को शांति पहुंचाये।
सुबह की बेला में जब ये महके,
सूरज भी मुस्कान में बहके।
प्रस्तुति – अवधेश कुमार ,
उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय रसुआर , मरौना , सुपौल

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