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बच्चों का खेल – जैनेन्द्र प्रसाद रवि


मोबाईल का युग आया,
बच्चे बूढे को मन भाया,
आज भी गांँवों में बच्चे, खेलते अनेक खेल।

कभी पानी में नाव चलाते,
कभी कीचड़ में दौड़ लगाते,
खाली डब्बा जोड़कर, चलाते पानी में रेल।

राजा को मंत्री देता गवाही,
खेलते मिलकर चोर सिपाही,
कोई थानेदार बन, भेजते ड़ाकू को जेल।

बात-बात पर कभी झगड़ते,
कभी दोस्तों के संग भी लड़ते,
आपस में कर लेते, अगले ही पल मेल।

असंभव को संभव बनाते,
अभावों में भी मुस्काते,
कभी सूखे बालू से भी, निकाल लेते वे तेल।

खेल-धूप में अव्वल आते,
अंग्रेजी से केवल घबराते,
बस सिर्फ पढ़ाई में,हो जाते हैं कभी फेल।


जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना

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