बचपन के दिन
सुबह सुबह आँखे खुलती थी
चिड़ियों के चहचहाने से
उठ बैठती थी अंगराई लेकर
फिर माँ के बुलाने से।
मीठी मीठी चाय के साथ
बिस्किट का वो मधुर स्वाद
है स्मरण आज भी मुझको
बचपन की हर छोटी याद।
जब दोपहर को लौटकर
विद्यालय से आते थे
सारे भाई-बहन बैठ चिटाई पर
दाल भात खाते थे।
उठते थे जब दोपहर की
नींद से शाम को
फिर क्या कोई बैठता था
एक पल भी आराम को।
दोस्तों की टोली जमती थी
लुका-छुपी खेला करते थे
खेल खेल में कभी कभी
आपस मे ही लड़ते थे।
गर्द धूल से सनकर हम
जब घर को आते थे
एक कतार में खड़े होकर
फिर सारे मार खाते थे।
7 से 9 का समय पढाई में
व्यस्त होता था
9 बजे के बाद ही खाने का
बंदोबस्त होता था।
भोजन के बाद दादी से
परियों की कहानी सुनते थे
फिर उन्हीं परियों की
सारे रात सपने बुनते थे।
छत पर लेटा एक साथ
होता पूरा परिवार था
कितना सुंदर था वो जीवन
बचपन का वो संसार था।।
चाँदनी समर
मुज़फ़्फ़रपुर बिहार