Site icon पद्यपंकज

बचपन-मधु कुमारी

बचपन

सच्चे सपनों का गुलशन

प्यारा प्यारा होता है बचपन
नन्हें नन्हें पंखों से भरती
खुले आसमानों में ऊंची उड़ान
छल कपट से दूर कोंपल मन
ऐसा प्यारा होता है बचपन ।

बस खुशियों से भरा निश्छल मन
हर ग़म से अनजान था वो बचपन
आंख मिचौली, चोर सिपाही
खेल खेलते नटखट हरदम
कितना सुंदर, कितना अद्भुत
प्यारा निर्मल था वो बचपन ।

हंसी – हंसी में मुट्ठी में
भर लेते थे हम गगन
निर्मल, निश्छल चंचल मन
जाने कहां गया वो बचपन ।

थी चाल – ढाल में
एक मासूम – सा अल्हड़पन
थी कदम – कदम पर मस्ती हरदम
न कोई फिकर,
न हीं कोई चिंतन
कितना सुंदर था वो
नटखट बचपन ।

चलो ढूंढ़कर लाए
फिर से वो आंगन
जहां खेले फिर से
मन हो स्वतंत्र
चलो ढूंढ़ लाते हैं
फिर से अपना प्यारा वो बचपन। 

मधु कुमारी
कटिहार 

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version