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बालक की अभिलाषा-एस. के. पूनम

बालक की अभिलाषा

बालक हूँ मेरी भी कुछ अभिलाषा है,
गुरुदेव का असीम सानिध्य मिले,
सादगी भरा वेशभूषा धारण करूँ,
समाज में सादगी का मिशाल बनूं।
बालक हूँ मेरी भी कुछ अभिलाषा है,
जीवन में बेहतर स्वास्थ्य जीवन जीऊँ,
नेतृत्व करने की उत्तम कला सीखूँ,
विश्व मंच पर राष्ट्र का नेतृत्व कर सकूं।
बालक हूँ मेरी भी कुछ अभिलाषा है,
विनोद प्रियता का ऐसा जादूगर बनूं,
कि बुझे चेहरे पर मुस्कान ला सकूँ,
सच्ची जिन्दगी जीने की कला सिखा सकूँ।
बालक हूँ मेरी भी कुछ अभिलाषा है,
झंझावातें हो या प्रलयंकारी जल-राशि,
आसमां मेंं कड़कती-चमकती बिजलियाँ,
या हो उफनती नदी का प्रचंड प्रवाह,
विकट परिस्थितियों में धैर्यता का पाठ पर्वतों से सीखूं।
बालक हूँ मेरी भी कुछ अभिलाषा है,
जीवन में न पड़े कभी बुराई की काली छाया,
आत्म-सम्मान के साथ जिन्दगी का हर पल जीऊँ,
मेरी जिन्दगी संसार में अवलोकन बन जाए।
बालक हूँ मेरी भी कुछ अभिलाषा है,
व़क्त के सुई के साथ चलता रहूँ,
व़क्त पर कर्त्तव्य पूरा करता रहूँ,
पश्चाताप की अग्नि में न जलूँ।
बालक हूँ मेरी भी कुछ अभिलाषा है,
जाति-धर्म के भेद से मुक्त रहूँ,
जग मेंं प्रेम की खुशबू बिखेरता रहूँ,
जन-जन मेंं विश्व कुटुम्बकम का भाव भरता रहूँ।
बालक हूँ मेरी भी कुछ अभिलाषा है,
प्रकृति के सृजनशीलता को देखता रहूँ,
ऐसा कुछ रचनात्मक कृति गढ़ जाऊँ,
इस धरा पर मेरा आना सार्थक हो जाए।

(स्वरचित)

एस. के. पूनम

फुलवारी शरीफ़, पटना

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