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भोर की किरण-भोला प्रसाद शर्मा

भोर की किरण

तुम भोर की किरण हो,
जगना तो हर हाल में पड़ेगा।
ये परम्परा है हमारी,
तपना तो हर हाल में पड़ेगा।
बिन तपे कोई दिखता नहीं,
वह बाजारों में भी बिकता नहीं।
गर लहु नमकीन होगी हमारी,
कामयाबी शायद नामुमकिन होगी हमारी।
तुम भोर की किरण हो,
जगना तो हर हाल में पड़ेगा।
चलना तो पड़ेगा हमें,
हो चाहे काँटों की राह ही क्यूँ नहीं।
मुकद्दर को तो लिखना ही पड़ेगा,
चाहे जैसा भी हो जज्बात मेरी।
पथ कंकरीली गर हो हमारी,
समझो जीत पक्की होगी हमारी।
तुम भोर की किरण हो,
जगना तो हर हाल में पड़ेगा।
समुंदर भी मचलता छोटी धार पाने के लिए,
हम किस खेत की मूली जो,
पाले अहंकार घराने के लिए।
एक साँझ भी कटे हमारे गर अपनों के बिन,
दिखावे दिखा जाती बजा सपेरों के बीन।
वह भी तो थे अपने आँखों के तारे,
जो काटे चौदह वर्ष वन-वन भटके सारे।
तुम भोर की किरण हो,
जगना तो हर हाल में पड़ेगा।

भोला प्रसाद शर्मा
पूर्णिया (बिहार)

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