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बूढ़ा पेड़-एस. के. पूनम

बूढ़ा पेड़

मेरे कुछ हरियाली भरी शाखाएँ,
तो कुछ ठूंठ होती मेरी डालियॉं,
जो इस बात का गवाह है कि,
बूढ़ा होकर भी जीने की आश नहीं छोड़ा।
आज भी उसी चौराहा पर खड़ा हूँ,
पथिकों को उसका राह दिखाता हूँ,
मेरी छाँव में खेलते बच्चों की मस्ती,
शाखाओं पर पक्षियों का चहचहाना,
साक्षी है मेरे अन्दर प्राण-वायु होने का।
बूढ़ा होकर तपिश झेलता,
सहता आँधियों का प्रहार,
फिर भी हिम्मत नहीं हारता,
और जीने की कला सिखाता।
व्यथित नहीं होता सूखी पत्तियों को देख,
बावला नहीं होता हरी पत्तियों को देखकर,
पवन के सरसराहटों से निकले मृदुल गीत,
स्वयं सुनता और संसार को भी सुनाता।
संघर्षों से कभी विचलित नहीं हुआ,
सुख-दुःख को प्रेम से आत्मसात किया,
जिसने सींचा, न सींचा सभी को छाँव दिया,
आज भी बूढ़ा होकर आनंद से जी रहा हूँ
पैगाम है मेरा जीने का ज्योत जलाए रखना,
बूढ़ा पेड़ हूँ, बूढ़ा पेड़ हूँ, बूढ़ा पेड़ हूँ।

एस. के. पूनम
फुलवारी शरीफ, पटना

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