पद्धरी छंद
सम -मात्रिक छंद, 16 मात्राएँ
आरंभ द्विकल से,पदांत Slअनिवार्य
रघुनंदन का है शिकार।
हर दिशा निशा लो गईं जाग।
सबके होंठों पर एक राग।।
रावण का करना आज दाह।
घर जाते करना वाह-वाह।।
बदलें तो अपना दुर्विचार।
कर लें अंतस् को निर्विकार।।
रावण का होगा अब न अंत।
है फैला अनिष्ट दिग्दिगंत।।
तम का मिटता है बस निशान।
तू सोच न रख करना मिटान।।
तम जाएगा होगा प्रकाश।
तम आएगा मत हो निराश।।
यह रघुनंदन का है शिकार।
क्यों बढ़ा रहे तन का विकार।।
हे सभी सभ्य! कर लें विचार।
हम गिरें नहीं लाऍं निखार।।
अंदर है बैठा राग-द्वेष।
कुंडल मारे है नाग-वेश।।
बोले कितना सत्य ‘अनजान’।
रख कान खोल सज्जन सुजान।।
रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रभारी प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दर्वेभदौर
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