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दोस्त-नसीम अख्तर

 दोस्त

जिंदगी की डगर पे,
कुछ अजनबी यूँ ही मिल जाते हैं

ऐसा प्रतीत होता वो कुछ भी नहीं,
पर दिल की पनाहों में बस जाते हैं।

पग पग के उठने से,
उनकी ही आहट आती है

उनकी स्पर्श से हर चीजों में,
एक प्रतिमा सी बस जाती है।

तलाशती है उनको नजरें हमारी,
एक स्नेह की डोर बंध जाती है

गंगा जल के जैसा पवित्र ये रिश्ता,
सच्ची दोस्ती की एक मिशाल बन जाती है।

खुशी और गम दोनों साथ जिया करते हैं,
हार जीत के खेल में एक दूसरे का साथ दिया करते हैंl

ऐ दोस्त! क्यों विचलित होता है-
जीवन के खेल में,
हर लोग मिल के बिखर जाते हैं

पर जीवन का ये डगर,
निरंतर ही बढ़ते जाते हैं।

नसीम अख्तर
बी॰ बी॰ राम +2 विद्यालय
नगरा, सारण

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