द्विज एक रूप दिव्य जगत में।
ज्ञान धर्म कर्म श्रेष्ठ सतत में।।
तेज सूर्य का सहन है करता।
विष्णु वक्ष पर पग रख सकता।।
रक्षण करता है वेदों का।
भक्षण करता है भेदों का।
वंदन जिसका राम भी करते ।
तपकर धरा धाम पर रहते ।।
नवगुण राम दिए बतलाए।
अवगुण जिनके पास न आए।
श्रद्धा से सब शीश झुकाए।
आज वही न विप्र सुहाए।।
सरल हृदय रिजु अतिसुंदर।
तप से डरता रहा पुरंदर।।
संतोष गहे रहता जीवन में।
क्षमाशील नहीं दोष हो मन में।।
वश में जिसकी इंद्रियांँ सारी।
दान धर्म व्रत का हो धारी।।
अन्याय दमन कर शूर बने वह।
दया भाव को रखता है गह।।
ब्रह्म -ज्ञान का सहज अधिकारी।
श्रेष्ठ सकल गुण जग हितकारी।।
इन गुणों का मंथन करिए।
जात वेद संरक्षण धरिए।।
राग द्वेष से बचकर रहना।
अहं भाव बने न गहना।।
नतमस्तक फिर दुनिया सारी।
विप्र बने फिर से अधिकारी।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला
बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

