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गंगा-जैनेन्द्र प्रसाद रवि

गंगा

स्वर्ग से धरती पर आई,
जन-जन की पातक नाशिनी गंगा।
विष्णु के चरणों से निकली,
शिव जटा निवासिनी गंगा।।
विष्णुपदी, सुरसरी, जाह्नवी,
कहीं मंदाकिनी बन जाती है।
विविध नामों से पूजी जाती,
पर भागीरथी कहलाती है।
त्रितापों को हरने वाली,

भवतारिणी, भवभामिनी गंगा।।
पावन रहता इसका पानी,
गाथा गाते ऋषि-मुनि, ज्ञानी।
धरा धाम को पावन करती,
जीवों को जीवन दायिनी गंगा।।
इसके जल से तर्पण करते,
देवों को नित्य अर्पण करते।
महिमा इसकी बढ़ जाती है,
जहां बहती उत्तर वाहिनी गंगा।।
भाग्यवान हैं इसके तटवासी,
अमृत सी इसकी जलराशि।
तन-मन को पावन कर देती,
सदियों से पतितपावनी गंगा।।
हजारों मिलती इसमें नदियां,
बहते बीती इसको सदियां।
अनेकों तीर्थ हैं इसके तट पर,
भयहारिणी, मोक्षदायिनी गंगा।।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि
बाढ़ (पटना)

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