नाभा छंद
२११-१११, २२२-२२
गौरव क्षणिक, पाना क्यों चाहें।
कौन बरबस, फैलाता बाहें।।
चाहत अगर, मैला हो तेरा।
अंतस गरल, फैलाए डेरा।।
सुंदर सृजन, होते हैं ज्यों ही।
वंदन नमन, पाते हैं त्यों ही।।
भक्ति भरकर, गाते गीतों में।
जीवन सरस, ढोते रीतों में।।
सत्य हितकर, भावों को ढाले।
तथ्य मनहर, शब्दों में पाले।।
चिंतन शुभद, होता जो न्यारा।
काव्य कवि कृति, होता है प्यारा।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
0 Likes

