Site icon पद्यपंकज

गुरु महिमा-देव कांत मिश्र दिव्य

गुरू महिमा

पान सुधा रस ज्ञान गुरु, इसे लीजिए जान।
चाह ज्ञान की सब रखें, करें सदा सम्मान।।

राग द्वेष रखते नहीं, नहीं मान अभिमान।
समदर्शी रहते सदा, देते विद्या दान।।

गागर में सागर भरे, दाता गुरु का ज्ञान।

जो रहता गुरु की शरण, मिल जाते भगवान।।

घोर तिमिर में गुरु सदा, दीप जलाते ज्ञान
गुरु कृपा से ही सदा, मानव का उत्थान।।

गुरु वंदन जो नित करे, बनते बिगड़े काम
जीवन भर देते रहें, राम उन्हें आराम।।

गुरु चरणों में है जिसे, श्रद्धा और विश्वास। जीवन में पाता वही, सुबुद्धि और विकास।।

गुरु कृपा से ही सदा, बनते शिष्य महान।
गुरु ही जीवन सार है, देते हैं अभिज्ञान।।

कुंभकार इव गुरु सदा, भरते ज्ञान अमोल गुरु की महिमा है बड़ी, सके न कोई तोल।।

गुरु ही भव से तारते, करते हैं उद्धार।
ऐसे गुरुवर को सदा, नमन सैकड़ों बार।।

गुरु चरणों का ध्यान कर, तजें सदा अभिमान।
पावन भावन के हृदय, करें सुधा का पान।।

हीरा परखे जौहरी, गुरु परखे हिय भाव।
परखे दोनों ही सदा, पार करे गुरु नाव।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

भागलपुर, बिहार

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version