गुरुजनों की भी नहीं,
छूते हैं चरण कभी,
कहीं दूर जाने वक्त, कहते हैं गुड-वाय।
बड़ों को प्रणाम हेतु
जोड़ते हैं हाथ नहीं,
एक दूसरे को लोग, करते हैं हेलो-हाय।
माता-पिता की भी लोग
करते हैं सेवा नहीं,
कुत्ता-बिल्ली घर पर, पालते हैं छोड़ गाय।
इसी को तो कहते हैं
घोर कलियुग आया,
“रवि’ आज पूछ रहा, अपनी बताएँ राय।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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