गुरुवंदन
स्वीकार करें वंदन मेरे गुरूजन
शब्द नहीं कि मैं लिख पाऊँ
करुँ हृदय से मैं अभिनंदन।
जग में महिमा है गुरूवर की
कानन बीच जैसे हो चंदन
स्वीकार करें वंदन मेरे ….।
बोध नहीं था परमब्रम्ह का
गुरु-कृपा से हुए प्रभु के दर्शन
स्वीकार करें वंदन मेरे ….।
गुरु गगन सम ज्ञान-पुंज हैं
कर जोड़े मैं खड़ा अकिंचन
स्वीकार करें वंदन मेरे ….।
सृष्टि में मैं शिला मात्र था
शिल्पकार तुम हो मेरे गुरूजन
स्वीकार करें वंदन मेरे …।
सृजनकर्ता तुम भाग्य राष्ट्र के
तुम्हीं हो मेरे भविष्य के दर्पण
स्वीकार करें वंदन मेरे ….।
मिला जो ज्ञान गुरु से मुझको
जग-मग हुआ मेरा अन्तर्मन
स्वीकार करें वंदन मेरे….।
स्वरचित
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
आर के एम +2विद्यालय
जमालाबाद मुजफ्फरपुर
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