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हंसवाहिनी वंदना-सुबह सवेरे-शालिनी कुमारी

हंसवाहिनी वंदना 

हंसवाहिनी मां शारदे तू
ज्ञान, बुद्धि, प्रकाश दे

तम को मन से दूर कर तू
राग जीवन में तू भर दें
जग के छल, माया, प्रपंच से
माँ तू मुझको दूर कर दें।

माँ तू हैं मेरे जीवन की ज्योति
तू ही हैं मेरी तन रूचि
तुझमे हैं करुणा-तरलता माँ
मुझमे भी संचार कर दें।

माँ मैं हूँ तेरी “शालिनी” तू
ही हैं मेरी पथ-प्रदर्शिका
ज्ञान की भंडार तू हैं माँ
मुझमें भी आशीष भर दें

हंसवाहिनी माँ शारदे तू
ज्ञान, बुद्धि, प्रकाश दें!

 

सुबह-सवेरे 

नव किरणों से नया आगमन करता सूरज आता है 
नया सवेरा नई उम्मीदें
नई रोशनी लाता है

उजियारा आते ही देखो कैसे तमस दूर भाग जाता है
आओ मन के अंधियारे को भी
नव किरणों से मुक्त करें

लाए सवेरा जीवन में फिर
नव उदयथल के ताने-बाने बुने
देती है यह नई प्रेरणा
मुस्काओ तुम कलियों सा

बीते पलों को पीछे छोड़ तुम
नए परगास को अपनाओ
नव दिवस में नई पहल कर
आगे बढ़ तुम बाहें फैलाओ

उच्छृंखलता से खुले गगन में
फिर से सफल कदम बढ़ाओ
सूरज की नव किरणें भी
देती हमें यही संदेश

जीवन की कठिनाइयों से जूझकर
तुम भी तपके कनक बन जाओ
अडिग रहो अपने कर्म पथ पर
दृढ़ निश्चयता से बढ़ते जाओ!

शालिनी कुमारी 
शिक्षिका
मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार )

(स्वरचित मौलिक कविता )

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