हे कौवे
कौवे की थी पढ़ी कहानी,
समझी न थी कैसा पानी।
कंकड़ कैसे पानी लाये,
कौवे ने पी ली क्यों पानी।
उम्र बीत रही देखा कौआ,
घर घर में बैठा था कौआ।
बिन पानी ऐठा था कौआ,
कोशिश कर जीता था कौआ।
पग पग देखा यही कहानी,
समझी जीवन में क्या पानी।
कोशिश विजयी रही निशानी,
कौवे की ही जय जय जानी।
हे कौवे क्यों हार न माने,
तेरी तो अब तू ही जाने।
मैं भी समझ रही अब माने,
लगता है जीवन रस पाने।
कोशिश की तो यही कहानी,
कौवे की है सुनी जुबानी।
कौवा जीवन में बस जानी,
सुन्दर सफल हुई जिंदगानी।
डॉ स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’
मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार
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