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हे प्रभु आओ बुद्ध रुप में-दिलीप कुमार गुप्ता

हे प्रभु आओ बुद्ध रुप में

रुग्ण विश्व व्याधि प्रबल है

संकट में अवनि विह्वल है
मनुजता को त्राण दिलाने
घटाटोप संताप मिटाने
हे प्रभु! आओ बुद्ध रुप में।

चतुर्दिक आज तिमिर जना है
मूक जीवों का क्रंदन घना है
दया अहिंसा का पाठ पढ़ाने
करूणा मैत्री का भाव जगाने
हे प्रभु! आओ बुद्ध रुप में।

मनुज प्रकृति में द्वन्द्व ठना है
मानव स्वंय में सर्वश्रेष्ठ बना है
निज गरिमा की याद दिलाने
स्वधर्म सतत सुबोध कराने
हे प्रभु! आओ बुद्ध रुप में।

अतिवाद का बोल बड़ा है
उर उदार का मखौल उड़ा है
मद्धिम संध्या दीप जलाने
हिय वीणा के तार सजाने
हे प्रभु! आओ बुद्ध रुप में।

नैसर्गिक पर कृत्रिम धुंध है
स्वर्णिम आभा आज कुंद है
सत्य सनातन का दरश कराने
तथाता शील सद्भाव गहवाने
हे प्रभु! आओ बुद्ध रुप में।

नगरों में भीड़ बड़ी है
पगडंडी वीरान पड़ी है
प्रकृति के सामीप्य बसाने
बोधि विटप छाया लुटाने
हे प्रभु! आओ बुद्ध रुप में।

सत्य पथ सुलभ श्रेष्ठ रहा है
असत्य आज फल-फूल रहा है
सत पथ अनुगमन कराने
निष्काम सेवा भगीरथी बहाने
हे प्रभु! आओ बुद्ध रुप में।

भौतिकता संग माया सना है
अशांति का कुहरा घना है
अन्तर्मन संतुष्टि शतदल महकाने
मौन शांति निसेनी चढाने
हे प्रभु! आओ बुद्ध रुप में।

दिलीप कुमार गुप्ता

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