मनहरण घनाक्षरी छंद
भाग-१
सुगम हमारी हिन्दी,
देश के माथे की बिंदी,
हिंदी से ही भारत की, होती पहचान है।
संस्कृत की बेटी यह-
कहलाती मातृभाषा,
हिंदी में तो पढ़ना व, लिखना आसान है।
करोड़ों भारतवासी-
बोलते विविध भाषा,
माला में पिरोया हुआ, पूरा हिंदुस्तान है।
अनेक राज्यों में आज,
हिंदी में ही होते कार्य,
हिंदी में ही गाया जाता, सदा राष्ट्रगान है।
भाग-२
तुलसी कबीर सूर,
रहीम निराला पंत,
महादेवी – ‘रेणु’ हुए, हिंदी के विद्वान हैं।
राष्ट्रकवि दिनकर,
विद्यापति मनहर,
प्रेमचंद जैसे यहाँ, लेखक महान हैं।
कहती भारत माता,
सुन मेरे पुत्र भ्राता,
विश्व में हिंदी से तेरी, बनी हुई शान है।
भाषा पे जो इतराता,
अलग मुकाम पाता,
दुनिया में कहलाता, वही बुद्धिमान है।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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