Site icon पद्यपंकज

हिंदी भाषा-आँचल शरण

हिंदी भाषा

मैं हिंदी भाषा हूँ,
प्रकृति मेरी जननी है
मैं संस्कृत के सिंध भाषा से आई हूँ!

मैं भारत की शान बढ़ाई हूँ,
चंद्रबिंदु से धरती पर चाँद उतारी हूँ
हिंदी भाषा को बिंदु से सजाई हूँ!

मैं अकेली ऐसी भाषा हूँ,
जो हमेशा सुव्यवस्थित लिखी जाती हूँ
इसीलिए तो वर्णमाला कहलाती हूँ!

मैं हर उच्चारण शुद्ध करती हूँ,
जो लिखती हूँ वही पढ़ती हूँ
मेरी कोई शब्द लुप्त नहीं होती है
जो कहना हो स्पष्ट कहती हूँ।

इसलिए तो मैं वेद पुराण में भी समाई हूँ,
भारत का अभिमान बढ़ाई हूँ।
फिर भी मैं 14 सितंबर 1949 को अपनी जगह बनाई हूँ,
हिंदी भाषा को अधिकारिक सूची में लाई हूँ
फिर इसे राजभाषा का अधिकार दिलाई हूँ।

मैं तब खुद को कमजोर पाती हूँ
जब लोग हिंदी को वैकल्पिक बनाते है
पर मैं तो अनिवार्य हूँ
हिंदुस्तान की सम्मान हूँ।

आँचल शरण
प्रा. वि. टप्पूटोला
बायसी, पूर्णियां
बिहार

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version