राष्ट्रीय हिंदी दिवस – दोहे
भाषा मधुरिम सरल सी, जन-मानस की चाह।
रस अलंकार से युक्त है, रखती शब्द अथाह।।०१।।
शब्द समाहित कर रही, हरपल सिंधु समान।
स्वाद सभ्यता की मगर, देती मीठा पान।।०२।।
सुर वाणी की गुणवती, हिंदी सुता सुजान।
सौम्य शील संस्कार से, होता जिसका मान।।०३।।
एकरूपता में सदा, करवाती अभ्यास।
वहीं एकता है जहाँ, समता होती खास।।०४।।
रसना रस हिंदी जहाँ, वहाँ श्रवण भी तृप्त।
प्रेम मान श्रद्धा मिले, अपने जैसे लिप्त।।०५।।
हिंदी भाषा मेल का, सिखलाती है पाठ।
रहती समता भाव ले, निस दिन यामें आठ।।०६।।
हिंदी नौ रस में सजी, सुंदर रूप निखार।
अलंकार की है धनी, कोमल सदा विचार।।०७।।
संस्कृत से आयी निकल, लेकर क्षमता अंश।
गौरव गाथा गा रही, फिर भी झेले दंश।।०८।।
अंग्रेजी के मोह में, फंँसा जहाँ इंसान।
क्रंदन सुनता है नहीं, हिंदी का नुकसान।।०९।।
हिंदी जोड़ें हृदय को, लेकर ममता भाव।
“पाठक” इसके संग में, रखता अपना चाव।।१०।।
रचनाकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

