हृदयवासिनी
सजग नयन की नूर लिये
सीरत सहज प्रवासिनी।
आ पड़ी अधिवास को
अक्षुण्ण अधिकार, प्रकाशिनि।।
चमक उठी वो सूरत
जो वर्षों पड़ी थी मौन।
चेहरे की खुशियां देखो
दुःख देखता है कौन?
अटकी पड़ी अधर में
थी किलकारियाँ वो कब से?
देख चमक ललाट की
हर्षित हैं सारे तब से।
रुप भाग्य लक्ष्मी की
देख स्तब्ध सुहासिनी।।
सजग नयन की नूर लिये
सीरत सहज प्रवासिनी।
आ पड़ी ………………ll
पंछी दिवस पर विश्व की
नव वर्ष की परी है दिखती वोl।
बंजर ममत्व को खिलकाने
पावस की झरी है लगती वो।।
बन ही गई है मां जो
हाथों में जान रखकर।
हर्षित है उनका चेहरा
व्यथा को मौन धर कर।।
विजय मुहूर्त पर आयी
जनकसुता हृदयवासिनी।
सजग नयन की नूर लिये
सीरत सहज प्रवासिनी।
आ पड़ी ……………..ll
अक्षय, अनन्त, घोषित
वो भूषित सा चेहरा।
गव्या, गुणित, गार्गी बन
गरिमामयी गिरिशा अकेहरा।
शाश्वत, सहज वो पितृ प्रेम
है अनन्त-अमर अविनाशनी।
सजग नयन की नूर लिये
सीरत सहज प्रवासिनी।
आ पड़ी अधिवास को
अक्षुण्ण अधिकार, प्रकाशिनि।।
अंबुवासिनी, छंदवासिनी बन
परचम दुनियां में लहराएगी।
कदम चूमती कृति उनका
जग रौशन कर जाएगी।।
व्यतीत होगा पल ये सुनहरा
उनकी अंखिया निहारकर।
और रौशन होगा जीवन
सु श्री की पग झारकर।।
पसार कर नभ में बाहें 2
कूहकेगी तरु वासिनी।
सजग नयन की नूर लिये
सीरत सहज प्रवासिनी।
आ पड़ी अधिवास को
अक्षुण्ण अधिकार, प्रकाशिनि।।
गौतम भारती
पिपरा, बनमनखी, पूर्णियाँ
मो. 9470202204