इस बार का दसहरा
मचलता है मन
उठते हैं
प्रार्थना के स्वर
चीरते हैं जैसे
कोरोना के
अंधियारे को
विश्वास का बल
आया है
सड़कों पर
चुहल बढ़ी है
हिम्मत ने
कदम बढ़ाया है
सावधान कोविड से
फिर भी
मन का बल भी
सम्बल है
रुकता है
कहाँ जीवन
यही हृदय का
भाव प्रबल है
नौनिहाल की
यह प्रार्थना
कि कब स्कूल जाएँगे
जब छुट्टी में
मम्मी पापा
उनको लेने आएँगे
शिक्षक हूँ
यह याचना
माँ मेरी तुझसे है
दूर हो सके
यह धुंधलका
आराधना का यही
स्वर है
सहज सरल हो
जीवन माँ
मनुजता का पथ
प्रशस्त हो
बुझती आशा दीपों में
शक्ति का मंगल भाव
सृजित हो।
गिरिधर कुमार संकुल समन्वयक
संकुल संसाधन केंद्र म. वि. बैरिया, अमदाबाद
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