चरणों की भक्ति
रूप घनाक्षरी छंद
दानवों का दुनिया में
अत्याचार बढ़ा जब,
धरा की पुकार सुन, लिया तब अवतार।
यशोदा मांँ के प्यार में,
राधा के मनुहार में,
नंद के भवन आए, जग के पालनहार।
भक्तों के उद्धार हेतु ,
दुष्टों के संघार हेतु ,
विभिन्न रूपों में तुम, आते यहांँ बार-बार।
एक तेरी आस मुझे ,
तुमसे विश्वास मुझे,
चरणों की भक्ति रज, दे दो मुझे एक बार।
जैनेन्द्र प्रसाद 'रवि'
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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