जैसी होती भावना
मनहरण घनाक्षरी छंद
मानने से पत्थर में-
मिलते हैं भगवान,
दूध में मक्खन सिर्फ, देखे मेरी भावना।
दिल की पुकार से तो-
मन की मुरादें मिलें,
श्रद्धा फलीभूत होता, अच्छी हो जो कामना।
जीव जगदीश मान,
ईश्वर का अंश जान,
विश्वास अटल होगा, मेरा है ये मानना।
प्रार्थना यूंँ बार-बार,
करेंगे जो लगातार,
एक दिन अवश्य सफल होगी साधना।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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